Friday, 25 March 2016

चांद की मुसीबत!

'' शुक्र है कि है दूर चाँद जरा
वर्ना छिड़ी ही रहती जंग
आशिकों में हर घड़ी
तोड़कर रख देने को
कदमों में अपने दिलबर के!... ''
अगर आपने भी कभी चाँद तोड़ने वाले जुमले का इस्तेमाल किया है तो  आप जरूर जानते होंगे कि कैसी लालिमा छा जाती है प्रेमिका के मुखड़े पर इसे सुनकर। पर सोचिए जरा अगर यह सच होता तो कैसा दृश्य होता? आगे-आगे चाँद और पीछे -पीछे प्रेमी-फौज़! बेचारा चाँद! भागता फिरता इधर-उधर। कभी इस प्रेमिका के आगे तो कभी उस प्रेमिका के। शायद फिर तो प्रेमी-समुह के पास यह विकल्प भी नहीं होता क्योंकि तब चाँद भी एक आम चीज होकर रह जाता और प्रेमी-समुह के जुमला-कोष से एक महत्वपूर्ण जुमला कम हो जाता।
मुझे तो लगता है फिर सारी दुनिया दो समुदायों में बॅट जाती - एक प्रेमी-समुह वाला जो चांद के पीछे भागता और दूसरा जो पहले के पीछे भागता। शामत तो ऐसे भी प्रेमियों की कम नहीं है, पर तब और बढ़ जाती। विरोधी समूह लठ्ठ लेकर दौड़ाता फिर कि जब देखो अंधेरा करवा देता है। इस लिहाज से तो चाँद दूर ही अच्छा है। दुनिया रौशन है जिससे। हम-आप जैसे लोगों की भी और उनकी तो खैर है ही!

6 comments:

  1. Abhishant ji apne premi or chand ka varnan yha kiya he vh behad umda or lajwab he

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  2. thanx a lot Nirja ji for ur comment and welcome to this blog

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  3. धन्यवाद कुंदन जी!स्वागत है आपका इस मंच पर।

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  4. Replies
    1. स्वागत आपका और धन्यवाद भी।

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