Wednesday 20 July 2016

एक गृहिणी

दुनिया के आंगन में झाड़ू लगाती
सुबह की गृहिणी
कितनी दक्षता से संभाल कर अलग कर देती है
 हमारे काम आने लायक चीजें,
 जैसे रात की बची हुई कोई याद,
 पलकों की अधखुली खिड़की पर लटका कोई स्वप्न
 और अंधेरे में विलीन होने से बची हुई कुछ आशाएँ…

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