Thursday 6 October 2016

सवाल ग़ैर-जरुरी!

माचिस की सफ़ेद तिल्ली
की नोक – सी काली ढ़लती रात
जब नींद ने छकाना शुरू किया
करवटों ने कोशिश तमाम की
अपने बाजुओं में नींद को थामने की
पर सब व्यर्थ!
नींद भी आख़िर फ़रेबी निकली
किसी प्रेमिका-सी।

थका-हारा उठ बैठा बिस्तर से
जलानी पड़ी बत्तियाँ और पीना पड़ा भींगोकर
छमकती हुई रौशनी को
फ़्रिज के ठंडे पानी से
कुछ आराम मिला तो जा बैठा
आरामकुर्सी पर
एक निहायत ग़ैर-जरुरी विचार के साथ।

कि हर सास माँ क्यों नहीं होती
कि हर बहू बेटी क्यों नहीं होती

और कमाल देखिए
ज्यादा विश्लेषण का वक़्त मिलता
उससे पहले नींद तारी थी
यों अब सवाल के जागने की बारी थी।

फिर तो देर रात के उस वक़्त से
सुबह के देर होने तक बेसुध
चैन से सोया था मैं
जैसे सो जाते हैं कुछ सवाल
वक़्त की आरामदायक बिस्तर पर।

©~अभिशान्त

No comments:

Post a Comment

Featured post

कहानी : नजरिया

“कितने हुए..? “-कुर्ते की ज़ेब में हाथ डालते हुए रामकिसुन ने पूछा। “पंद्रह रूपये हुजूर”-  हांफते हुए कहा रिक्शेवाले ने। “अरेssss..!.. क्या...