
पेड़ों के कंधे पर सर रख
सोती हवा,
‘मार्निंग वाक’ पर निकले
नर-नारी,
स्प्रिंग लगे हों कदमों में जैसे
उछल उछल कर चलते हैं,
थामे उनकी यादों को हम भी
धीरे- धीरे से टहलते हैं।
दूर उधर प्राची के उपर
बीच गगन और धरती के
आखें खोले सूरज हंसता
देख हर कली नयन मटकाती है।
मैय्या से मिलने की धुन में
और जरा इन बछड़ों को देखो
कैसे पिछले पैरों पर उछलते हैं।
गुजरा जब चौराहे से आगे
देखी भीड़ लगी है भारी
खोज खबर की तलब लगी फिर
पहुंचा तनिक भीड़ से आगे
सज्जन एक पड़े थे नीचे
नशे की आगोश में
उतरी नहीं थी चढ़ कर उनकी
आते कैसे होश में?
सच है कि यह दुनिया
बड़ी ही अजीबो-गरीब है
जिसके जी को जो भा जाये
बस जीने की वही तरकीब है।
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