Sunday, 10 April 2016

पंखुड़ी

अभी-अभी गुजर गयी हवा
ने कहा कुछ गुजरने से पहले
उसके कान में, हिलने लगी खुशी में,
मन उड़ने चला पंछी बन
आसमान में।

इधर देखा उधर भी देखा,
देखा हर सुनसान में।
अचरज में पड़कर फिर पूछा
मैंने उसके कान में-
बात कौन-सी कही हवा ने
जो तुम हुई हर्षित इतना
सुना सको तो मुझ सुनाओ
राज़ खुशी में कंपित होने का।

सकुचाई पहले फिर शरमाई
आखिर होंठ हिला पंखुड़ि ने
कहा मधुर मुस्कान से-
हवा एक आवारा था वह
छूकर निकल गया मुझको
नेह निमंत्रण राजकुंवर का
आया था देने,
पर जाते-जाते भी
यहीं छोड़ गया खूद को।


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