Monday, 14 March 2016

सुनो चंदा!

सुनो चंदा  एक बात
ढ़लो ना अभी बन के रात
रुक जाओ जरा कुछ और
आती ही होगी अब निंदिया
होने वाली है उनसे मुलाकात।
देखता हूँ जिसमें अक्स उनका
दर्पण बनी जग में तू ही तो आई
कहती है दुनिया दाग़ जिसको तुम्हारा
यह जाने है तू, है वही उनकी परछाई।
है तेरे दम से
रौशन यह मन का अंधेरा
शीतल तेरे रुप की चांदनी से
अनजान ऐसे रहेंगे वो कब तक
बातें बढ़ेगी इसी बानगी से।

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