चलो मोड़ दें वक्त की नाव को
लग जाए फिर उसी किनारे
मिल जाए जिंदगी बैठी कही
बचपन की सुनहरी चादर बिछाए!
कच्ची कलियाँ कोमल मन की
पाकर पानी उन बचपन की
खिल जाएँ जग के आँगन में
चल फिर एक बाग़ लगाएँ!
कब गिरे कब उठ खड़े हुए
कब गिनता है रुक के बचपन
राहों के ठोकर खाकर भी
मुस्काता रहता है जीवन
मस्ती के मंगल मौसम को
फिर से जी लें रसपान करें!
लग जाए फिर उसी किनारे
मिल जाए जिंदगी बैठी कही
बचपन की सुनहरी चादर बिछाए!
कच्ची कलियाँ कोमल मन की
पाकर पानी उन बचपन की
खिल जाएँ जग के आँगन में
चल फिर एक बाग़ लगाएँ!
कब गिरे कब उठ खड़े हुए
कब गिनता है रुक के बचपन
राहों के ठोकर खाकर भी
मुस्काता रहता है जीवन
मस्ती के मंगल मौसम को
फिर से जी लें रसपान करें!
No comments:
Post a Comment