घड़ी बड़ी मुश्किल गुजरी और वक्त जरा लंबा निकला
जो तप रहा था अरसे से उस मौसम को ठंडाने में।
जो तप रहा था अरसे से उस मौसम को ठंडाने में।
एक हुए हैं हाथ – कमल हम-आप हुए हैं एक सभी
एक हुए टीवी – पेपर सब न्यूज़ – बुलेटिन एक हुए।
है योगदान बहुत उनका, इस मौसम के बदले जाने में,
मातृभूमि का कर्ज़ चुकाने, डरे नहीं जो सदके जाने से।
खड़ा अकेला सिर्फ वही था जिसने साधा एक ही लक्ष्य
मौत का अपने संग स्वयंवर करने निकला जो दुर्गम्य।
सुनो तो साथी रूको तनिक यह काम नहीं आसां इतना
एक माँ का कर्ज़ चुकाने में बहता है रक्त-पसीना कितना!
कह देना सैनिक बात अलग है, बन जाना सैनिक बात अलग
घर-आँगन, माँ- बाप-प्रिया और दुनिया ठुकराना बात अलग।
पाया जीवन जो ख़त्म भी होगा आज नहीं तो कुछ बाद बरस
पर याद करेगा तुम्हें शहीदों! घड़ियाँ फिर भी यह बरस-बरस।
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