झटक कर डब्बे से सिगरेट-सा
थाम लेता हूँ एक अंदाज तेरा
सुलगते अहसास के माचिस से फिर
जलाता हूँ हरेक अरमान अपना।
आकाश के नीचे बुन जाता है
एक और आसमान विगत का
बिखरता है फैलकर जब
अरमानों का गहरा काला धुंआ।
यों तो बादल काले छाते हैं
बरसते हैं धुल जाते हैं पर
जाने कैसे बादल हैं अक्षुण्ण ये
यादों के, न घुलते हैं न छंटते हैं,
बस बूंद-बूंद बरसते हैं।
थाम लेता हूँ एक अंदाज तेरा
सुलगते अहसास के माचिस से फिर
जलाता हूँ हरेक अरमान अपना।
आकाश के नीचे बुन जाता है
एक और आसमान विगत का
बिखरता है फैलकर जब
अरमानों का गहरा काला धुंआ।
यों तो बादल काले छाते हैं
बरसते हैं धुल जाते हैं पर
जाने कैसे बादल हैं अक्षुण्ण ये
यादों के, न घुलते हैं न छंटते हैं,
बस बूंद-बूंद बरसते हैं।
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