Wednesday 27 April 2016

नदी और बिरजू चाचा

उतरते हुए देखा सूरज को जब
पश्चिम की ओर नदी में
तो याद आ गये अकस्मात्
बिरजू चाचा गांव के।

अक्सर उतरते थे
थक-हारे नदी के रास्ते
सांझ के जरा पहले।

शीतल-धार में गोते लगाने के पहले
परे रख देते थे हरेक परेशानी
और थकान पीछे छूट गए
राहों की।

जल के बिछौने पर लेटने से पूर्व
पूछ लेते थे हाल इधर-उधर की।

खुशी को धो-पोछ कर
लौटाने से पहले नदी
दझ गृहिणी सी रख देती
संभाल कर उनकी हरेक परेशानी।

2 comments:

  1. बहुत प्रभावी ... नदी के बहाने कितना कुछ कहने का प्रयास ..

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    1. सर्वप्रथम स्वागत आपका इस ब्लॉग पर सर! तत्पश्चात बहुत आभार और धन्यवाद!

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