“ अभी फ़ारिग होना है पेड़ों को, रात की बची हुई नींदों से
सुना है बारिश की बूंदों ने, उन्हें रात भर जगाए रखा है”
“बड़े समय से पहुँचे हो मियाँ, देखो मौसम कितना खुशगँवार है
झूमते हुए उस पौधे ने कहा, जड़ों ने जिसे अभी अपने पास रखा है”
“बलखाती हवा निकल गई सर्र से, मस्तियों में उन्हें हिला गई
वे सजीले फूल थे मालतियों के, जिन्होंने रंगों को बचा रखा है”
“परिंदों का एक कारवाँ अभी, उतरा है इस शहरे- बियावान में
बसते हैं बहुत लोग जहाँ , उसे जगा इन बेचारों ने रखा है”
“मेरी हसीन गुड़िया है वो, धीरे – धीरे बढ़ रही मेरी परछाई है
पराया कहती है दुनिया उसे , जिस दौलत ने मुझे अपनाए रखा है”
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति! आभार "एकलव्य"
ReplyDeleteबहुत आभार आपका ध्रुव जी!स्वागत है आपका..
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