Wednesday 8 March 2017

बस स्त्री ही रहने दो

कुछ और नहीं बस
बराबर कर दो मुझे
घर में, बाहर में,
ज़िन्दगी की टेढ़ी नज़र में
और दुनिया के हर उस
बरामदे में
जहाँ बना हुआ है मेरे नाम का
छोटा-सा एक कोना
दीवारों से घिरा हुआ
मैं ख़ास नहीं
आम होना चाहती हूँ
मैं स्त्री हूँ, बस
स्त्री होना चाहती हूँ


चित्र :गुगल से


No comments:

Post a Comment

Featured post

कहानी : नजरिया

“कितने हुए..? “-कुर्ते की ज़ेब में हाथ डालते हुए रामकिसुन ने पूछा। “पंद्रह रूपये हुजूर”-  हांफते हुए कहा रिक्शेवाले ने। “अरेssss..!.. क्या...