Friday 14 April 2017

ब्लॉगिंग के साल भर बाद


सच कहूँ तो ब्लॉग लिखने की शुरुआत जब मैंने की, तो कोई उद्देश्य नहीं था इसके पीछे। बस अपने लिखे हुए को एक जगह देने की कोशिश की थी। ब्लॉगिंग की ए. बी. सी. डी भी पता नहीं थी। लेकिन गुगल के साथ यह मुश्किल भी आसान हो गयी। शुरूआती उत्साह था सो जब भी समय मिलता pageview, traffic, etc. बढ़ाने के तरीक़े ढ़ूँढ़ता, कोई भी विचार आया नहीं कि झटपट कविता बनाकर पोस्ट कर दिया। शुरूआत के उत्साह का असर था बनने के पहले महीने में ही 13 कविताएँ पोस्ट हो चुकी थीं। लेकिन ब्लॉगिंग की कई सारी ज़रूरतें होती हैं जिनमें से विभिन्न ब्लॉग-समूहों में शामिल होना, लगातार सक्रिय रहना, अलग-अलग लोगों से संपर्क बनाना, वगैरह-वगैरह..इसी कड़ी में मैंने इसका नाम रखा – हिन्दी कविता धारा। लेकिन हिन्दी कविता जैसे बड़े धरातल को अपने ब्लॉग के लिए छोटा करना मुझे शर्मिंदा करने लगा और फिर मैंने इसका नामकरण किया – उन्मुक्त आँगन। जिसमें मेरे विचार उन्मुक्त होकर जगह पा सके।
ज़ाहिर है लिखने 📝 के लिए टाईम निकालना जहाँ कठिन हो वहाँ लिखने के प्रचार-प्रसार पर कहाँ समय दे पाता, दो-तीन महीने में pageview कम होने लगी, बावज़ूद मुझे यह समझ में आया कि हर दो-चार दिन में जो मैं लिख रहा हूँ वह कैसी कविता बन रही होगी, सिर्फ़ Flow बढ़ाना मेरा मकसद था भी नहीं। फिर मैंने सिर्फ़ वही पोस्ट किया जो मुझे अच्छा लगा। नतीज़ा यह है कि पिछले लगभग छ: महीने में सिर्फ़ चार पोस्ट डाली गयीं हैं इस ब्लॉग पर।
कुछ दिनों पहले इस ब्लॉग के एक साल पूरे हो चुके हैं
और मुझे खुशी है कि अब तक इसे 5000 लोगों ने देखा है। यह कोई बहुत बड़ा आँकड़ा नहीं है। लेकिन मेरे लिए बहुत छोटा भी नहीं है। वैसे चौंकाने वाली बात यह है कि हाल के कुछ महीनों में US, France और अरब देशों से बहुत ज़्यादा व्यूज़ आए हैं भारत के मुक़ाबले। पता नहीं यह खुशी की बात है कि दुखी होने की!
वैसे इस बात का श्रेय आप सभी को जाता है जिन्होंने इस ब्लॉग पर जाने पढ़ने और मेरा उत्साहवर्धन करने का आभार किया है। आप सबका बहुत धन्यवाद और हमेशा स्वागत।

नामालूम राह थी पर शुरूआत कहीं से करना ही था,
जब मिलने लगा साथ आपका, कारवाँ बनना ही था।

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