सफ़र
जैसे-जैसे बढ़ता गया
और चलने की चाह में चलता गया
काटता गया बस
सफ़र ज़िंदगी का
और निकला था लेकर जो
पोटली आनंद की
धीरे-धीरे घटता गया
हालाँकि आने वाली है मंज़िल
ऐसी संभावना अभी दिखती नहीं।
कलरव
जीवन का स्वाद और
भाषा की मिठास
जीवन का स्वाद और
भाषा की मिठास
पिंजड़े में बंद परकटे पंछी की मधुर गान में नहीं
स्वछंद उड़ान में थिरकते
परों की धुन पर गूंजते कलरव में होती है
शिष्टाचार
धैर्यविहीन धवल वह लहर
धैर्यविहीन धवल वह लहर
बिछी आती है प्रात तट की
अशांत शीतल गरमाई पर
बिना देखे, बिना मुड़े
उन धैर्यवान तरंगों की ओर
जिसने हाथ पकड़ निकाला और पहुँचाया
उसे असीम गहराई से किनारे तक
ओदे रेत पर फिसलते
नर्म, नारंगी सूरज से मिलाने..
जबकि लौटने से पहले
मिलना चाहिए था उनको
कम-से-कम
कम-से-कम
अंतिम अभिवादन विदाई का!
( तस्वीर गूगल से ) |
प्यार का अंतराल
सूर्योदय का सूरज
आवरण से बाहर आती कली
संपूर्ण होती सुंदर रचना चित्रकार की
मुझसे मिलकर खिलता तेरा चेहरा।
दोपहर का सूरज
चमकता तेरा रूप-सिंगार
मचलती मेरी लालसा
प्रज्वलित प्रेम हमारा।
सूर्यास्त का सूरज
न चाहते हुए भी
तुमसे दूर जाने की वेदना
विदा करता रक्ताभ चेहरा तुम्हारा
तुम्हारी अवांछित याद को
मिटाती मेरी बेबसी।